लेखनी कहानी -04-Oct-2022 झूठों का बादशाह
कैसे कैसे लोग हैं इस देश में ? कोई चारा चोर तो कोई टोंटी चोर । कोई पप्पू तो कोई अप्पू । कोई लेडी हिटलर तो कोई एम्परर । कोई पलटूराम तो कोई दंगाराम । हर तरह की वैरायटी मिलेगी यहां । तभी तो यह देश निराला है । उजले लिबास के पीछे दिल काला है । झूठ, बेइमानी, मक्कारी का बोलवाला है । मुश्किल होता हर दिन निवाला है और सत्य बोलने वाले का होता मुंह काला है ।
बात तब की है जब देश में भ्रष्टाचार का बोलबाला था । बोलबाला क्या साम्राज्य था । ईमानदारी का रेनकोट पहनकर बेइमानी के समंदर में गोता लगाया जा रहा था । मुखिया के मुंह पर टेप चिपका हुआ था इसलिए वह बोल नहीं सकता था । कई बार तो लगा कि वह गूंगा है मगर उसे कुछ अवसरों पर महारानी की चरण चंपी में प्रशस्ति गान करते हुए देखा गया था इसलिए यह सिद्ध हो गया था कि मुखिया गूंगा नहीं था मगर वह गूंगा जैसा लगता था । कभी कभी तो रोबोट जैसा भी लगा था । लेकिन इस देश में जब "चरण पादुकाओं" से राज्य किया जा सकता है तो रोबोट में ही क्या खराबी है ? रोबोट कम से कम आज्ञा का पालन तो ढंग से करता है । उसने गांधारी की तरह आंखों पर पट्टी भी बांध रखी थी इसलिए ना तो उसे देश की दुर्दशा दिख रही थी और ना ही भ्रष्टाचार । ये बढिया तरीका है सुखी रहने का । कुछ देखो ही मत , फिर कुछ भी नहीं दिखेगा । ना भ्रष्टाचार और ना ही अत्याचार । ना बलात्कार और ना ही जनता का हाहाकार । किसी अनर्थशास्त्री को मुखिया बनाने के कितने फायदे हो सकते हैं, जनता को अच्छी तरह पता चल गया था ।
देश में हाहाकार मचा हुआ था । जनता में बहुत जबरदस्त आक्रोश था । सरकार त्राहि त्राहि कर रही थी । ऐसा लगता था कि "सिंहासन" पर अब कब्जा ज्यादा दिनों तक बना नहीं रह सकेगा । बिना सरकार के तो जीना ही बेकार है । सरकार है तो "माल" है नहीं तो जिंदगी जी का जंजाल है । इसलिए सरकार बचाने की कवायद शुरू हो गई ।
इस देश में एक से बढकर एक ज्ञानी भरे पड़े हैं । वेद, उपनिषद, पुराण और न जाने कितना आध्यात्मिक साहित्य यहां लिखा गया । तो "कामशास्त्र" भी इसी देश में लिखा गया । तेनालीराम, बीरबल जैसे हाजिर जवाब भी यहां पैदा हुए तो शेखचिल्ली भी यहीं की देन है । हर फन में माहिर लोगों का देश है यह ।
तो बड़े बड़े ज्ञानी लोगों के पास सत्ता के दलाल पहुंच गये । मैराथन विचार विमर्श के पश्चात यह निर्णय लिया गया कि इस आक्रोश को ठंडा करने के लिये एक आंदोलन सरकार के द्वारा करवाया जाये । घोषित रूप से यह आंदोलन स्वत : स्फूर्त लगना चाहिए लेकिन होगा यह सरकार के पिठ्ठुओं के द्वारा ही । सरकार को जी भरकर कोसा जाये , गालियां निकाली जायें । एक बड़ी मीटिंग इसी मुद्दे पर हुई कि कौन कौन सी गालियां निकाली जा सकती हैं और कौन कौन सी नहीं । Do's एवं Don'ts की भी एक सूची बन गई थी । यह आंदोलन वास्तविक सा लगे इसलिए एक "साफ सुथरे" से चेहरे की तलाश आरंभ हो गई । गांधीजी का स्वर्गारोहण हुये करीब 60 - 65 वर्ष हो चुके थे । इसलिए इस पीढी को गांधीजी के बारे में कुछ पता नहीं था और गांधीजी का नाम तो सदैव जिंदा रखना था क्योंकि अभी भी इस देश में वोट तो गांधी बाबा के नाम पर ही मिलते हैं । ये अलग बात है कि जो लोग अपने आपको गांधीजी का अनुयायी कहते हैं उन लोगों ने ही गांधीजी के सिद्धांतों की हत्या की थी फिर भी वे सबसे अधिक अहिंसक, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक कहलवाने के लिये साम, दाम, दंड, भेद के जरिये अपने "ईको सिस्टम" के द्वारा ऐसी छवि गढते रहे ।
मगर समय में बदलाव आ रहा था । सत्ता की बागडोर हाथ से छूटती जा रही थी तो एक "नया गांधी" का चरित्र गढा गया और उसका खूब ढिंढोरा पीटा गया । कुछ तथाकथित समाजसेवियों को इस नये गांधी के साथ कर दिया गया जिससे गाड़ी पटरी पर ही चलती रहे, बेपटरी ना हो जाये । जमकर नौटंकी की गई । वैसे भी यह देश बड़ा सांस्कृतिक है । यहां खास तौर पर "नौटंकी" बहुत पसंद की जाती है । जितना बड़ा नौटंकीकार, उतना ही बड़ा कलाकार माना जाता है । जनता ने वह नौटंकी बहुत पसंद की । बहुतों ने तो अपना तन, मन, धन सब कुछ दे दिया इस तथाकथित आंदोलन में । यह आंदोलन सतयुगीन "समुद्र मंथन" जैसा था जिसमें से 14 रत्न निकलने थे ।
इस आधुनिक "समुद्र मंथन" से रत्न निकले भी । ईमानदारी की चादर ओढे धूर्त मक्कार रूपी रत्न । सब एक से बढकर एक । पहले तो पता ही नहीं चला कि कौन कितना बड़ा धूर्त, मक्कार है । ये तो समय है जो आदमी की पहचान करवाता है । अच्छा, जब एक साथ सैकड़ों, हजारों की संख्या में कपटी, झूठे, बेईमान लोग पैदा होते हैं तो उनका नेतृत्व करने के लिए भी उनसे ही श्रेष्ठ, गुणी व्यक्ति चाहिए । जिस तरह ठगों का नेतृत्व महाठग ही कर सकता है उसी तरह मक्कारों का नेतृत्व भी महा मक्कार ही करेगा । तो झूठों की मंडली का नेतृत्व करने के लिए "झूठों के बादशाह" का अवतरण हुआ । ऐसा व्यक्ति "ना भूतो ना भव" मिला है इस देश को कि लोग धन्य धन्य कह रहे हैं भगवान को, समुद्र मंथन को और ज्ञानी जनों को ।
उसके झूठ बोलने की ताकत का कोई अनुमान नहीं लगा सकता है । भगवान ने इतने फुरसत से रचना की है इस व्यक्ति की कि झूठ शर्म के मारे खुद किसी समंदर में जाकर छुप गया है और कह रहा है कि भाई, अब बस कर । लेकिन भाई का कहना है कि "अभी तो गाड़ी स्टार्ट ही हुई है , अभी तो टॉप गीयर का मजा भी दूंगा" । जनता उसके झूठ पर इतनी फिदा हो गई कि उसे एक दो छोटी मोटी "जागीर" भी दे दी । अब तो वह "भारत भाग्य विधाता" बनने का सपना देखने लगा है । ये इसी देश का कमाल है कि जिसका एक भी प्रतिनिधि लोकसभा में नहीं हो वह भारत भाग्य विधाता बनने की डींगें मार सकता है । वैसे, डींगें मारना हर किसी के बस की बात नहीं है, इसके लिये बड़ा लंबा चौड़ा कलेजा होना चाहिए । जिंदा मक्खी नहीं हाथी निगलने की कला होनी चाहिए । हवाई किले बनाने की क्षमता होनी चाहिए और टोपी पहनाने में महारथ हासिल होनी चाहिए । देश के साथ गद्दारी का जजबा होना चाहिए और मतलब के लिए गधे को बाप बनाने का तजुर्बा होना चाहिए । ये सारी खूबियां किसी एक इंसान में मिलना असंभव सा है । मगर हमारा सौभाग्य है कि हमने इसी जन्म में ऐसा दुर्लभ "जीव" इसी भारत भूमि पर देख लिया है । हमारा तो जीवन सफल हो गया । बस, हम तो भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि वे इस "झूठों के बादशाह" को शीघ्र ही भारत भाग्य विधाता बना दे जिससे यह देश तिल तिल कर मरने के बजाय एक साथ ही रसातल में चला जाये या दुश्मन देशों के अधीन हो जाये ।
तो सब लोग एक बार मेरे साथ जोर से बोलिये "झूठों के सरदार की"
"जय"
इति श्री झूठ महाकाव्यम
श्री हरि
4.10.22
Gunjan Kamal
05-Oct-2022 07:43 PM
शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻
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Pratikhya Priyadarshini
05-Oct-2022 01:22 AM
Bahut khoob 💐
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Palak chopra
05-Oct-2022 12:19 AM
Bahut khoob 💐🙏
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